Wednesday, August 25, 2010

क्या बात है!!

गुमसुम हैं क्यूँ ? क्यूँ हैं खफा! कुछ तो बता ,क्या बात है?
यूँ भी बहुत.. है खूब तू.. पर ये अदा! ..क्या बात है!!

ये भी चलो.. अच्छा हुआ.. दोनों रहे खुश इस तरह
तुम ने कहा.. 'है बात क्या '..मैंने सुना.. 'क्या बात है!'

जी लीजिये.. मर जाइए.. आ जाइए.. ना आइये
फुरसत किसे ..है आजकल.. पूछे जरा क्या बात है?

चाहत तेरी.. चर्चा तेरा.. खुशबू तेरी जलवा तेरा
महफ़िल हो या.. गुलशन कोई.. इसके सिवा क्या बात है.

यूँ टपकी है.. फिर से मेरे.. कमरे की वो.. छत रात भर
जैसे कोई ..रोता रहा.. कह ना सका ..क्या बात है.

वाकिफ हूँ मैं.. दीवारों की.. आदत से यूँ अच्छी तरह
मैंने कहा ..कुछ भी नहीं.. सुनता रहा क्या बात है.

चाहा बहुत.. शिकवा करूँ ..अबकि खुदा.. से मैं लडूं
तोहफा मिला ..जब दर्द का.. कहना पड़ा क्या बात है!!

जाने लगीं.. साँसे मेरी.. आने लगा रुखसत का दिन
अब जा केये.. आया समझ.. मसला है क्या, क्या बात है.

नासेह बड़ी.. मुश्किल में है.. क्या तो कहे.. क्या ना कहे
खुद ही कही.. हमने ग़ज़ल.. खुद ही कहा.. क्या बात है!!

..... मर गया


क्यूँ कहते हैं आखिर ये सब ..जो डर गया सो मर गया
मेरा तो सारा डर गया मैं जब से देखो मर गया

अब आईने को देख कर मैं सोचता हूँ बस यही
है कौन ये जिंदा है जो, वो कौन था जो मर गया

क्यूँ हैं तेरी आँखें ये नम किस बात का अफ़सोस है
जिंदा यहाँ पे कौन था.. जो सोचते हो मर गया

इन ख्वाहिशों ने क़त्ल यूँ मेरा किया चुपचाप से
जिस रोज़ मैं पैदा हुआ उस शाम ही को मर गया

मेरी हैसियत कुछ और थी मेरी कैफियत कुछ और थी
किश्तों पे मैंने गम लिए.. ना भर सका तो मर गया

ना जाने कितनी ही दफा ये वाकया अब हो चुका
जिन्दा रहूँ मैं इसलिए इक बार फिर लो मर गया

जब मौत ने मेरा पता पूछा तो लोगों ने कहा
रहता था जो इन्सां यहाँ मुद्दत हुयी वो मर गया

कैसे जियूं कैसे मरुँ इस दिल का अपने क्या करूँ
तुझे पा के तुझ पे मर गया तुझे जब दिया खो, मर गया

नफरत सही मुझसे मगर मैं जानता हूँ आज भी
आएगा वो दौड़ा हुआ बस इतना कह दो मर गया

तेरी याद की खुशबू नहीं तेरे रूप का चर्चा नहीं
मैं जब कहूँ ऐसी ग़ज़ल उस रोज़ समझो मर गया