Monday, November 23, 2009

एक लड़की........एक कविता

कवितायें अक्सर
लड़कियों की तरह होती हैं
बेवजह मुस्काती
चुपचाप चलती
पल्लू संभालती
लड़ती झगड़ती
देर तक सजती सवरती
मन की देहली
पर खेलती रहती हैं
बाहर कागज़ की दुनिया से
बहुत घबराती हैं
अजनबियों से शर्माती हैं
फिर जैसे देख बाप की मजबूरी
डिग्रियां सम्हाल
दफ्तरों में जाती हैं
छोटी सी नौकरी की खातिर
बसों की क्यू में
सुबह शाम नज़र आती हैं
लाखों निगाहों का सामना करती
किसी नदी की तरह
बहती चली जाती हैं
लड़कियां भी अक्सर
कविताओं की तरह ही होती हैं

5 comments:

chakresh singh said...

sundar rachna ke liye badhaai

Tapesh said...

shukriya..itni achi kavita parhenki absar diaa aapne..
bahut hi sundar kavita hai ..aap ki ye saadhnaa age barh chale...

Tapesh said...

kavita laarki ki tarah ho sakti hai..
parntu larki kavita ki tarah nehi ho sakti....
:)

prithwipal rawat said...

bahut khoob ji!

prithwipal rawat said...

bahut khoob ji!