Monday, November 1, 2010

यूँ दिवाली मना लीजिये

दिल जरा जगमगा लीजिये
यूँ दिवाली मना लीजिये

रौशनी को दिए हैं बहुत
अब ये सूरज बुझा लीजिये

उसकी जिद है पुराने हैं गम
कुछ न कुछ तो नया लीजिये

आप की भी सुनेगा खुदा
चार पैसे कमा लीजिये

फीकी पड़ जायेगी फुलझड़ी
बस जरा खिलखिला लीजिये

रंगो रोगन जरूरी नहीं
घर को घर तो बना लीजिये

ना रहेगी अमावस सनम
रुख से जुल्फें हटा लीजिये

पास तो बैठिये चैन से
इतनी जहमत उठा लीजिये

और तोहफे ना कुछ चाहिए
ये ग़ज़ल गुनगुना लीजिये ..