सलाम तुझ को करें भी कैसे
छिपा के खुद को रखें भी कैसे
कि चुप ना बैठे ये दिल जरा सा
जो हम कहें कुछ कहें भी कैसे
छिपा है तुझसे क्या बंदापरवर
तेरी नज़र से बचें भी कैसे
मगर ये चादर हैं इतनी मैली
तुझे कभी हम दिखें भी कैसे
हैं लाखों अरमां हैं लाखो शिकवे
कहें, ये जुर्रत करें भी कैसे
मैं जानता हूँ, तू जानता है
कि तुझको गाफिल कहें भी कैसे
जो प्यास दी उसका शुक्रिया है
मगर करम ये कियें भी कैसे
दिए हमें जाम सारे खाली
अगर पियें तो पियें भी कैसे
जो जर्रे जर्रे में तू ही तू है
तो दूर तुझसे रहे भी कैसे
जहां के मालिक जहाँ में तेरे
जो हम न भायें रुकें भी कैसे
Monday, July 26, 2010
Friday, July 23, 2010
नाम अपना मुहब्बत बताया करे
अपने बन्दों को जब आजमाया करे
शै खुदा तेरे जैसी बनाया करे
आये काफिर यकीं पे तुझे देख कर
पीर को तू खुदा भी भुलाया करे
रिंद देखे तो होशों में आये मगर
शेख देखे तुझे लडखडाया करे
चेन खोये उमर भर का इक पल में वो
जो नज़र तुझ से कोई मिलाया करे
हाथ तू जो उठा के ले अंगड़ाइयां
गश फरिश्तों को भी जान आया करे
चाँद जो देख ले तुझको इकबारगी
आसमाँ अपने सर पे उठाया करे
जो घटा तेरी जुल्फों पे नज़रे करे
आंसुओं से जहाँ को भिगाया करे
आँख चाहें तुझे एकटक देखना
है फिकर क्या इन्हें जान जाया करे
छू के तुझको जो गुजरे जरा हौले से
वो हवा खुशबुओं में नहाया करे
तुमको चाहे दुआ दे या पूजा करे
दिल बिचारा समझ ये ना पाया करे
लोग कहते हैं कातिल मसीहा तुझे
नाम अपना मुहब्बत बताया करे
शै खुदा तेरे जैसी बनाया करे
आये काफिर यकीं पे तुझे देख कर
पीर को तू खुदा भी भुलाया करे
रिंद देखे तो होशों में आये मगर
शेख देखे तुझे लडखडाया करे
चेन खोये उमर भर का इक पल में वो
जो नज़र तुझ से कोई मिलाया करे
हाथ तू जो उठा के ले अंगड़ाइयां
गश फरिश्तों को भी जान आया करे
चाँद जो देख ले तुझको इकबारगी
आसमाँ अपने सर पे उठाया करे
जो घटा तेरी जुल्फों पे नज़रे करे
आंसुओं से जहाँ को भिगाया करे
आँख चाहें तुझे एकटक देखना
है फिकर क्या इन्हें जान जाया करे
छू के तुझको जो गुजरे जरा हौले से
वो हवा खुशबुओं में नहाया करे
तुमको चाहे दुआ दे या पूजा करे
दिल बिचारा समझ ये ना पाया करे
लोग कहते हैं कातिल मसीहा तुझे
नाम अपना मुहब्बत बताया करे
Friday, July 16, 2010
जरा जरा
करते हो हमसे जान मुहब्बत जरा जरा
अच्छी नहीं है इतनी किफायत जरा जरा
माना कि गम हैं और भी इक इश्क के सिवा
फिर भी निकाला तो करो फुर्सत जरा जरा
जो रूठने से इश्क मुकम्मल भी गर बने
जाँनाँ निभाना पर ये रवायत जरा जरा
'ना' कह लो चाहे खूब तुम अपनी जुबान से
'हाँ' कर रही हैं आँख शरारत जरा जरा
होने लगे हो और हंसी दम ब दम जो तुम
बढ़ने लगी हैं दिल कि मुसीबत जरा जरा
बन ठन के निकले तुम तो फ़रिश्ते ये कह उठे
लो देखो आ रही है कयामत जरा जरा
प्यासे लबों के सामने सागर तो है मगर
मिलती है तिशनगी को इजाजत जरा जरा
टूटे हैं जाम सब्र के साकी को देख कर
के हो ना जाएँ सारी हिदायत जरा जरा
इक बार मेरी आँखों से जो देख लो अगर
हो जाएँगी ये सारी शिकायत जरा जरा
ना बीत जाए रात ये होने को है सुबह
होने लगा है चाँद भी रुखसत जरा जरा
आ जाये लब पे तेरे जो थोड़ी सी भी हंसी
मेरी ग़ज़ल पे होगी इनायत जरा जरा
करते हो हमसे जान मुहब्बत जरा जरा
अच्छी नहीं है इतनी किफायत जरा जरा
माना कि गम हैं और भी इक इश्क के सिवा
फिर भी निकाला तो करो फुर्सत जरा जरा
जो रूठने से इश्क मुकम्मल भी गर बने
जाँनाँ निभाना पर ये रवायत जरा जरा
'ना' कह लो चाहे खूब तुम अपनी जुबान से
'हाँ' कर रही हैं आँख शरारत जरा जरा
होने लगे हो और हंसी दम ब दम जो तुम
बढ़ने लगी हैं दिल कि मुसीबत जरा जरा
बन ठन के निकले तुम तो फ़रिश्ते ये कह उठे
लो देखो आ रही है कयामत जरा जरा
प्यासे लबों के सामने सागर तो है मगर
मिलती है तिशनगी को इजाजत जरा जरा
टूटे हैं जाम सब्र के साकी को देख कर
के हो ना जाएँ सारी हिदायत जरा जरा
इक बार मेरी आँखों से जो देख लो अगर
हो जाएँगी ये सारी शिकायत जरा जरा
ना बीत जाए रात ये होने को है सुबह
होने लगा है चाँद भी रुखसत जरा जरा
आ जाये लब पे तेरे जो थोड़ी सी भी हंसी
मेरी ग़ज़ल पे होगी इनायत जरा जरा
Monday, July 12, 2010
जेब में शाम ले के चले
अपने ईनाम ले के चले
कितने इल्जाम ले के चले
चीखती हैं ये खामोशियाँ
दिल में कोहराम ले के चले
जितने रुसवा हुए इश्क में
और भी नाम ले के चले
बिक गए आज बाज़ार में
दर्द के दाम ले के चले
दिख गए ख्वाब जब भी कभी
चैनो आराम ले के चले
ढूंढते हैं कोई गम नया
जो हमें थाम, ले के चले
कौन जाने कहाँ हो थकन
जेब में शाम ले के चले
जब भी बहके हमारे कदम
और इक जाम ले के चले
खो के पाया है सारा जहाँ
हम ये पैगाम ले के चले
कितने इल्जाम ले के चले
चीखती हैं ये खामोशियाँ
दिल में कोहराम ले के चले
जितने रुसवा हुए इश्क में
और भी नाम ले के चले
बिक गए आज बाज़ार में
दर्द के दाम ले के चले
दिख गए ख्वाब जब भी कभी
चैनो आराम ले के चले
ढूंढते हैं कोई गम नया
जो हमें थाम, ले के चले
कौन जाने कहाँ हो थकन
जेब में शाम ले के चले
जब भी बहके हमारे कदम
और इक जाम ले के चले
खो के पाया है सारा जहाँ
हम ये पैगाम ले के चले
Wednesday, July 7, 2010
शराब चीज़ बुरी है..........
शराब चीज़ बुरी है तो फिर भली क्या है
बेखुदी है गलत तो कह दो फिर सही क्या है
न सूझता है तेरा मेरा कुछ मैखानों में
है ये अँधेरा तो फिर बोलो रौशनी क्या है
जो डूबे जाम में तो अपनी सब लगे दुनिया
मकान क्या है मोहल्ला क्या और गली क्या है
कभी मिलोगे अगर सांझ ढले हम से तुम
ये जान लोगे मेरी जान जिंदगी क्या है
बुरा ना कहता कभी तूने जो चखी होती
तुझे पता ही नहीं तेरी भी कमी क्या है
गमों के दरिया भी सागर में समा जाते हैं
आ बैठ पास जरा चख ले तू ख़ुशी क्या है
ये होश वाले भी क्या जाने बंदगी कि जिन्हें
खबर नहीं कि खुदी क्या है बेखुदी क्या है
इस कदर रखते हैं हम रिंद होंसले अपने
खुदा से पूछते हैं अब रजा तेरी क्या है
लगी दिल की नहीं है कोई दिल्लगी प्यारे
लगे जो चोट ना सीने पे तो लगी क्या है
बहक ना जाऊं थोड़ी और पिला और पिला
जरा आने दे मुझे होश अभी पी क्या है
थोड़ी होने दो पुरानी अभी ताज़ा है ग़ज़ल
रुक के देगी ये मज़ा खूब कि जल्दी क्या है
बेखुदी है गलत तो कह दो फिर सही क्या है
न सूझता है तेरा मेरा कुछ मैखानों में
है ये अँधेरा तो फिर बोलो रौशनी क्या है
जो डूबे जाम में तो अपनी सब लगे दुनिया
मकान क्या है मोहल्ला क्या और गली क्या है
कभी मिलोगे अगर सांझ ढले हम से तुम
ये जान लोगे मेरी जान जिंदगी क्या है
बुरा ना कहता कभी तूने जो चखी होती
तुझे पता ही नहीं तेरी भी कमी क्या है
गमों के दरिया भी सागर में समा जाते हैं
आ बैठ पास जरा चख ले तू ख़ुशी क्या है
ये होश वाले भी क्या जाने बंदगी कि जिन्हें
खबर नहीं कि खुदी क्या है बेखुदी क्या है
इस कदर रखते हैं हम रिंद होंसले अपने
खुदा से पूछते हैं अब रजा तेरी क्या है
लगी दिल की नहीं है कोई दिल्लगी प्यारे
लगे जो चोट ना सीने पे तो लगी क्या है
बहक ना जाऊं थोड़ी और पिला और पिला
जरा आने दे मुझे होश अभी पी क्या है
थोड़ी होने दो पुरानी अभी ताज़ा है ग़ज़ल
रुक के देगी ये मज़ा खूब कि जल्दी क्या है
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