Monday, July 26, 2010

ओ बंदापरवर

सलाम तुझ को करें भी कैसे


छिपा के खुद को रखें भी कैसे

कि चुप ना बैठे ये दिल जरा सा

जो हम कहें कुछ कहें भी कैसे





छिपा है तुझसे क्या बंदापरवर

तेरी नज़र से बचें भी कैसे

मगर ये चादर हैं इतनी मैली

तुझे कभी हम दिखें भी कैसे



हैं लाखों अरमां हैं लाखो शिकवे

कहें, ये जुर्रत करें भी कैसे

मैं जानता हूँ, तू जानता है

कि तुझको गाफिल कहें भी कैसे



जो प्यास दी उसका शुक्रिया है

मगर करम ये कियें भी कैसे

दिए हमें जाम सारे खाली

अगर पियें तो पियें भी कैसे



जो जर्रे जर्रे में तू ही तू है

तो दूर तुझसे रहे भी कैसे

जहां के मालिक जहाँ में तेरे

जो हम न भायें रुकें भी कैसे

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