Wednesday, July 7, 2010

शराब चीज़ बुरी है..........

शराब चीज़ बुरी है तो फिर भली क्या है
बेखुदी है गलत तो कह दो फिर सही क्या है


न सूझता है तेरा मेरा कुछ मैखानों में
है ये अँधेरा तो फिर बोलो रौशनी क्या है


जो डूबे जाम में तो अपनी सब लगे दुनिया
मकान क्या है मोहल्ला क्या और गली क्या है


कभी मिलोगे अगर सांझ ढले हम से तुम
ये जान लोगे मेरी जान जिंदगी क्या है


बुरा ना कहता कभी तूने जो चखी होती
तुझे पता ही नहीं तेरी भी कमी क्या है


गमों के दरिया भी सागर में समा जाते हैं
आ बैठ पास जरा चख ले तू ख़ुशी क्या है


ये होश वाले भी क्या जाने बंदगी कि जिन्हें
खबर नहीं कि खुदी क्या है बेखुदी क्या है


इस कदर रखते हैं हम रिंद होंसले अपने
खुदा से पूछते हैं अब रजा तेरी क्या है


लगी दिल की नहीं है कोई दिल्लगी प्यारे
लगे जो चोट ना सीने पे तो लगी क्या है


बहक ना जाऊं थोड़ी और पिला और पिला
जरा आने दे मुझे होश अभी पी क्या है


थोड़ी होने दो पुरानी अभी ताज़ा है ग़ज़ल
रुक के देगी ये मज़ा खूब कि जल्दी क्या है

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