जरा जरा
करते हो हमसे जान मुहब्बत जरा जरा
अच्छी नहीं है इतनी किफायत जरा जरा
माना कि गम हैं और भी इक इश्क के सिवा
फिर भी निकाला तो करो फुर्सत जरा जरा
जो रूठने से इश्क मुकम्मल भी गर बने
जाँनाँ निभाना पर ये रवायत जरा जरा
'ना' कह लो चाहे खूब तुम अपनी जुबान से
'हाँ' कर रही हैं आँख शरारत जरा जरा
होने लगे हो और हंसी दम ब दम जो तुम
बढ़ने लगी हैं दिल कि मुसीबत जरा जरा
बन ठन के निकले तुम तो फ़रिश्ते ये कह उठे
लो देखो आ रही है कयामत जरा जरा
प्यासे लबों के सामने सागर तो है मगर
मिलती है तिशनगी को इजाजत जरा जरा
टूटे हैं जाम सब्र के साकी को देख कर
के हो ना जाएँ सारी हिदायत जरा जरा
इक बार मेरी आँखों से जो देख लो अगर
हो जाएँगी ये सारी शिकायत जरा जरा
ना बीत जाए रात ये होने को है सुबह
होने लगा है चाँद भी रुखसत जरा जरा
आ जाये लब पे तेरे जो थोड़ी सी भी हंसी
मेरी ग़ज़ल पे होगी इनायत जरा जरा
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