Wednesday, September 1, 2010

और बेहतर कलाम क्या करते


तेरे पहलू में शाम क्या करते
उम्र तेरी थी , नाम क्या करते

तेरी महफ़िल में हम जो आ जाते
लोग किस्से तमाम क्या करते

आसमां तेरा ये जमीं तेरी
हम जो करते मुकाम क्या करते

होश में आते हम भला क्यूँ कर
सारे खाली थे जाम , क्या करते

कशमकश आग की उसूलों से
मौम के इंतजाम क्या करते

सच के फिर साथ चल नहीं पाए
झूठ पे थे इनाम, क्या करते

कांच का था ये दिल जो टूटा है
इत्तला खासोआम क्या करते

जब से होने लगे खुदा बौने
कीये झुक झुक सलाम, क्या करते

सूलियां और दिवार तलवारें
गर न होतीं निजाम क्या करते

फिर लड़े खूब मंदिरोमस्जिद
क्या खुदा करते, राम क्या करते

नाम तेरा ही बस लिखा हमने
और बेहतर कलाम क्या करते

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