Thursday, September 23, 2010

अजीब मंज़र

बड़ा अजीब मंज़र है .......कुछ लोग मुझे विनीत भाई कहते हैं .......कुछ लोग विनीत बाबु ......आज मेरे चाहने वालों के दो गुट बन गए हैं ......भाई कहने वालों में और बाबु कहने वालों में ठन गयी है .......मेरे ही नाम का वास्ता दे कर दोनों गुट एक दुसरे से बहस में उलझे हैं ......बहस इस कदर बढ़ गयी है की नौबत हाथापाई की आ गयी है ......मेरा कौन सा नाम ज्यादा अच्छा है ..मुझे तो नहीं पता ......पर मेरे चाहने वालों को मुझसे ज्यादा पता है ...धीरे धीरे झगडा इतना बढ़ गया कि मामला अदालत तक पहुँच गया है ..मेरे स्मारक की जमीन को लेकर परेशानी ज्यादा है ..दोनों गुट उस पे अपना कब्ज़ा चाहते हैं ..आज अगर मैं खुद जिन्दा हो कर भी इन्हें आ कर समझाऊं तो ये समझने को तैयार नहीं हैं ..इतनी बहस के बीच मुझे अपने आस्तित्व से ही नफरत सी होने लगी है ........

अचानक पसीने से तरबतर मेरी आँख खुली ....मुझे अपने सपने पर बड़ी हंसी आ रही है .. सामने सुबह का अखबार पड़ा है .....24 सितम्बर ..की वजह से पूरा देश दहशत में है ......अब मुझे अपने सपने पर रोना आ रहा है ....

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