तुम रहे ना अब तुम्हारे गम रहे
अब कहाँ वो पहले जैसे हम रहे
रंज से खूंगर न हो पायें हैं हम
गालिबन तोहफे तुम्हारे कम रहे
तेरी जुल्फों के न साए थे मगर
जिन्दगी भर कितने पेंचोखम रहे
बात करते भी तो कैसे करते हम
दोनों अपनी बात पे कायम रहे
बस्तियां क्या बादलों की हैं वहां
मौसमे दिल क्यूँ हमेशा नम रहे
रात उन हाथों में ही पत्थर दिखे
थामते दिन भर जो ये परचम रहे
एक लम्हा भी न सोये चैन से
ख्वाब ऐसे आँखों में हरदम रहे
ये रकीबों की रही बदकिस्मती
मेरे कोई दोस्त ना हमदम रहे
पाँव फ़ैलाने को जी तो है बहुत
ये बरसती छत अगर जो थम रहे
जिक्र उसका फिर करे मेरी ग़ज़ल
नासमझ! क्या टाट में रेशम रहे!
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1 comment:
वाह! बहुत बढ़िया.
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